संप्रेषण

संप्रेषण का अर्थ- 


एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को जो सूचना या जानकारी दी जाती है और दूसरा व्यक्ति समझ लेता है तो वह संप्रेषण कहलाता है|
व्यापक अर्थ में संप्रेषण से तात्पर्य दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य सूचनाओं तथा विचारों तथा तथ्यों का इस प्रकार आदान-प्रदान है कि वह इन का अर्थ समझ सके तथा अर्थ के साथ ही उनकी भावनाओं, तर्को, निहितार्थों आपसी समझ तथा विश्वासों को भी समझ सके|
एंडरसन के अनुसार-" संप्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति चेतनातया तथा अचेतनतया, दूसरों के संज्ञानात्मक ढांचे को सांकेतिक रूप में उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है|"
Eder dale," संप्रेषण का अर्थ होता है परस्पर विचारों एवं भावनाओं की साझेदारी करना|"
        " संप्रेषण अनुभव के साझेदारी की प्रक्रिया है जब तक यह अनुभव सभी को प्राप्त ना हो जाए|"
संप्रेषण की आवश्यकता- प्रभावशाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए प्रभावशाली संप्रेषण आवश्यक है प्रभावशाली शिक्षण में शिक्षक एवं शिक्षार्थी मिल-जुलकर प्रभावशाली संप्रेषण के लिए प्रयास करते हैं|
हरबर्ट के अनुसार," शिक्षण का प्रमुख कार्य, विचारों, तथ्यों एवं सूचनाओं को शिक्षार्थियों तक पहुंचाना है|"
      शिक्षक इस हेतु जितने प्रभावशाली ढंग से इनका संप्रेषण करता है वह उतना ही सफल शिक्षक कहलाता है| शिक्षण व प्रशिक्षण के क्षेत्र में शिक्षार्थियों छात्राध्यापकों को जटिल नियमों, विधियों, पद्धतियों तथा शिक्षण व्यूह रचनाओं के विषय में ज्ञान प्रदान करने के लिए अनेक संप्रेषण तकनीकी का प्रयोग किया जाता है|
संप्रेषण का महत्व- शिक्षा एक विकास की प्रक्रिया है जिसका संपादन कक्षा शिक्षण में किया जाता है| शिक्षा प्रक्रिया की इकाई कक्षा है| शिक्षण की क्रियाओं का संचालन संप्रेषण प्रवाह से किया जाता है| शिक्षण को अंतः प्रक्रिया मानते हैं और संप्रेषण प्रवाह भी अंतः प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है| कक्षा के संप्रेषण में शाब्दिक संप्रेषण, और शाब्दिक संप्रेषण तथा लिखित संप्रेषण, तीनों प्रभावों को प्रयुक्त किया जाता है| इसके अतिरिक्त अशाब्दिक संप्रेषण अथवा हाव भाव से शिक्षक अपनी अभाव एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करता है| इस प्रकार कक्षा संप्रेषण में शाब्दिक तथा अशाब्दिक अंतः प्रक्रिया का संपादन किया जाता है| जिससे कक्षा में सामाजिक भावात्मक वातावरण का सृजन किया जाता है और शिक्षार्थी उसमें सीखने के अनुभव प्राप्त करते हैं, जिससे शिक्षार्थियों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किए जाते हैं|
संप्रेषण की विशेषता-
1. परस्पर विचारों एवं भावनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है|
2. संप्रेषण एक पारस्परिक संबंध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है|
3. यह द्विवाही प्रक्रिया है| इसमें दो पक्ष होते हैं- एक संदेश देने वाला तथा दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला|
4. संप्रेषण प्रक्रिया एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया होती है|
5. विचारों एवं भावनाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाता है|
6. संप्रेषण की प्रक्रिया में अनुभव की साझेदारी होती है|
7. संप्रेषण की प्रक्रिया में परस्पर अंतः प्रक्रिया पृष्ठपोषण होना आवश्यक होता है|
8. इसमें आदान-प्रदान की प्रक्रिया को पृष्ठपोषण दिया जाता है|
9. संप्रेषण में प्रत्यक्षीकरण समावेशित होता है|
10. संप्रेषण सदैव गत्यात्मक प्रक्रिया होती है|
संप्रेषण के घटक- संप्रेषण के तीन घटक हैं-
      1. प्रेषक
      2. संदेश
      3. ग्राही
संप्रेषण के प्रकार- प्रभावशाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय एवं जीवंत बनाने के लिए संप्रेषण की निरंतरता आवश्यक होती है|
संप्रेषण के दो प्रकार हैं-
    1. शाब्दिक संप्रेषण
    2. अशाब्दिक संप्रेषण
शाब्दिक संप्रेषण- शाब्दिक संप्रेषण में भाषा का प्रयोग किया जाता है| यह संप्रेषण मौखिक रूप में वाणी द्वारा तथा लिखित रूप में शब्दों, संकेतों, विचार, भावनाओं आदी के द्वारा दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है| शाब्दिक संप्रेषण को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. मौखिक संप्रेषण- इस संप्रेषण में वाणी द्वारा तथ्य एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है
2. लिखित संप्रेषण- इसमें संदेश देने वाला लिखित रूप में शब्दों या संकेतों के द्वारा इस प्रकार से संदेश प्रदान करता है कि संदेश ग्रहण करने वाला व्यक्ति उसकी भावनाओं को समझ सके|
अशाब्दिक संप्रेषण- अशाब्दिक संप्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है इसमें वाणी संकेत, चक्षु-संपर्क, मुख मुद्राओं एवं स्पर्श संपर्क आदि का प्रयोग किया जाता है|
1. वाणी संप्रेषण- वाणी संप्रेषण में विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अथवा छोटी-छोटी समूह में आने आमने सामने रहकर वाणी द्वारा की जाती है; जैसे- "हां-हां", "हां-हूं" कहना, सीटी बजाना, जोर से बोलना, चीखना, मुस्कुराना आदि|
2. मुख मुद्राएं एवं चक्षु-संपर्क- कक्षा में चक्षु-संपर्क द्वारा शिक्षक अपने छात्रों की मनोस्थिति का ही अंदाजा लगा लेते हैं|
3. स्पर्श संपर्क- इसमें स्पर्श को ही प्रमुख माध्यम बताया बनाया जाता है| स्पर्श के माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं| प्रशंसा की शाबाशी, प्यार का एक चुंबन अपने आप बहुत सी भावनाओं, सम्वेदनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का एक संपूर्ण साधन है|
संप्रेषण को प्रभावी बनाने वाले तत्व- संप्रेषण को प्रभाव पूर्ण बनाने के लिए विचारकों ने कुछ सिद्धांत बनाए हैं जिन्हें ध्यान में रखना बहुत जरूरी है|
1. तत्परता का सिद्धांत- कहावत है," तुम घोड़े को पानी के स्रोत के पास तो ले जा सकते हो परंतु उसे पानी पीने के लिए बाध्य नहीं कर सकते|" अर्थात उसमें पानी के लिए प्यास या रूचि होना जरूरी है| इसी प्रकार संप्रेषण प्राप्तकर्ता की संप्रेषण सामग्री में रूचि होना आवश्यक है| संप्रेषण तभी प्रभावशाली बन सकता है जब उसको प्राप्त करने के लिए संप्रेषण प्राप्तकर्ता पूरी तरह से तैयार हो|
तत्परता के नियम- इस नियम को प्रतिपादित करते हुए थार्नडाइक ने स्पष्ट किया है कि अधिगमकर्ता के अधिगम प्रक्रिया में सफलता इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करती है कि वह इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने हेतु किस सीमा तक तत्पर या तैयार है|
2. भाषा के उचित उपयोग का सिद्धांत- संप्रेषण में भाषा को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए इन गुणों का होना आवश्यक है-
1. भाषा की स्पष्टता- संप्रेषण की भाषा जटिल नहीं होनी चाहिए| भाषा ऐसी हो जिसे संप्रेषण प्राप्तकर्ता आसानी से समझ सके
2. संक्षिप्तता- किसी भी विचार अथवा भावना को इधर-उधर घुमा फिरा कर अथवा बहुत लंबी-चौड़ी भूमिका बनाकर संप्रेषण करना उचित नहीं है|
3. विचारों की सुसंबद्धता- संप्रेषित की जाने वाली सामग्री में भाव तथा विचारों की क्रमबद्धता का तालमेल होना चाहिए|
4. सुलहर अथवा अनुतान- भाषा को प्रभावी बनाने के लिए उपयुक्त सूर, लय, भाव तथा ताल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|