बाल विकास विषय के क्षेत्र तथा आवश्यकता

बाल-विकास विषय के क्षेत्र-

       बाल विकास बालक के संपूर्ण जीवन का अध्ययन है| इसका विषय क्षेत्र गर्भावस्था से लेकर युवा अवस्था तक की सभी अवस्थाओं के सभी पहलुओं का अध्ययन है| इसके अतिरिक्त उनके क्षेत्र के अंतर्गत बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्व सिद्धांतों का अध्ययन है| इसे निम्नलिखित  भागों में विभाजित किया गया है|
बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन-
1. गर्भावस्था
2. शैशवावस्था
3. उत्तर शैशवावस्था
4. बाल्यावस्था
5. वय: संधि
6. किशोरावस्था
7. प्रौढ़ावस्था
बाल विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन-
बालक के व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं का विकास गर्भावस्था से शैशवावस्था में नहीं हो पाता| जैसे-जैसे वह परिपक्व अवस्था की ओर बढ़ता जाता है, उसी प्रकार व्यक्तित्व के पहलुओं का विकास होता जाता है| बाल विकास के विभिन्न पहलू निम्नलिखित है-
1. शारीरिक विकास
2. गत्यात्मक विकास
3. मानसिक विकास
4. संवेगात्मक विकास
5. भाषा विकास
6. सामाजिक विकास
7. नैतिक विकास
8. चारित्रिक विकास
9. सौंदर्यात्मक विकास
10. धार्मिक विकास
11. स्मृति का विकास
12. प्रतिभा और कल्पना का विकास
13. अवधान व रुचि का विकास
14. चिंतन एवं रूचि का विकास
15. खेल विकास
16. व्यक्तित्व का विकास
बाल-विकास की आवश्यकता-
1. बालकों के स्वभाव को समझने में सहायक- विभिन्न आयु स्तर पर बालकों के व्यवहार में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं तथा उन परिवर्तनों के क्या कारण होते हैं उनका क्या प्रभाव पड़ता है यह सब बाल विकास बताता है इसलिए अभिभावक, अध्यापक, बाल निदेशक बाल मनोविज्ञान के अध्ययन से अधिक आयु के बालक के व्यवहार को आसानी से समझ सकते हैं|
2. बालकों की शिक्षा में सहायक- बालक की शारीरिक उम्र में कितनी मानसिक आयु रखता है या उसे रखनी चाहिए या किसी बालक की मानसिक आयु क्या है| इसका पता बाल विकास के द्वारा ही किया जाता है तथा उसी के अनुसार उस बालक विशेष की शिक्षा की व्यवस्था में सहायता मिलती है| कक्षाओं के पाठ्यक्रम निर्धारण में सहायता मिलती है कि किस कक्षा में कितनी मानसिक आयु होती है उसी के अनुसार पाठ्यक्रम निर्धारण किया जाता है| विभिन्न अवस्था में बालक की ग्राही शक्ति कितनी होगी उसी के अनुसार पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाता है|
3. बालक के विकास को समझने में सहायक- प्रत्येक बालक का विकास कुछ विशेष नियमों के अनुसार होता है| कुछ विशेष उम्र में विकास में परिवर्तन आते हैं उनके बारे में बाल विकास बताता है जिससे यह ज्ञात होता है कि किसी विशिष्ट उम्र में बालक का व्यवहार कैसा होना चाहिए जिससे बालक के विकास को समझा जा सकता है|
4. बालक के व्यक्तित्व विकास को समझने में सहायता- बालक के व्यक्तित्व विकास को कौन से तत्व प्रभावित करते हैं तथा किस प्रकार प्रभावित करते हैं| उचित व्यक्तित्व विकास के लिए कौन-कौन से तत्व आवश्यक है, कैसा वातावरण होना चाहिए, इन सब की जानकारी बाल विकास देता है| इसके अध्ययन से व्यक्तित्व विकास में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को समझा जाता है|
5. बालक के व्यवहार नियंत्रण में सहायता- प्रत्येक बालक अपने व्यवहार संबंधी कुछ समस्याएं उत्पन्न करता है| उन्हें नियंत्रित करने तथा दूर करने में बाल मनोविज्ञान सहायता करता है|
6. बाल-निर्देशन में सहायता- बच्चों में माता पिता, अध्यापक तथा बाल निर्देशक जो कि बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए निर्देशित करते हैं| बाल विकास उनकी मदद करता है| बाल विकास सिखाता है कि विभिन्न प्रकार के बालकों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें किस प्रकार की व्यवहारिक शिक्षा देनी चाहिए जो कि उनके आगे बढ़ने में सहायक हो|
7. सुखी पारिवारिक जीवन में सहायक- यदि बच्चे चरित्रवान उचित व्यक्तित्व वाले होते हैं तो माता-पिता तथा परिवार सुखी तथा प्रसन्न रहता है| बाल मनोविज्ञान के अध्ययन द्वारा बालकों में उचित व्यवहार उत्पन्न कर पारिवारिक जीवन सुखी बनाया जा सकता है|
बाल विकास का महत्व- यदि आप बच्चे का सर्वांगीण विकास उचित तरीके से करना चाहते हैं तो आप को बच्चों को जानना और समझना होगा| एक सफल शिक्षक के रूप में बच्चे का सर्वांगीण विकास तभी कर सकते हैं जब आप बच्चे की आयु, मानसिक स्तर, अभिवृद्धि विकास के साथ होने वाले परिवर्तनों, सीखने की क्षमता, आदतों, रुचियों, आवश्यकता, समस्याओं आदि के साथ साथ सीखने सिखाने की रुचि पूर्ण एवं आनंदमय शिक्षण विधियों से परिचित होंगे| बाल मनोविज्ञान में हम इन्हीं के बारे में अध्ययन करते हैं|
बाल विकास का उद्देश्य- बाल विकास का उद्देश्य बदलती हुई सामाजिक व्यवस्था में कुशल आत्मा निर्देशन की योग्यता में वृद्धि, व्यक्तित्व का अभिवर्धन और उसका संतुलित विकास करना तथा मानव स्वभाव को समझने में शिक्षक की सहायता करना है| मानव स्वभाव के ज्ञान के द्वारा शिक्षक बालकों को उचित निर्देश देने और उनका पथ प्रदर्शन करने में सफल हो सकते हैं| उचित मार्गदर्शन मिलने पर बालक सामाजिक परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने और सामाजिक दायित्वों का भली-भांति निर्वाह करने में सफल होगा| अतः बाल विकास का उद्देश्य बालकों में सदाचार की भावना विकसित करना है| बाल विकास का उद्देश्य शिक्षक के तथ्यों समानीकरण से अवगत करा कर उसके कार्य में सहायता देना है, जिससे वह बालको को उसके संतुलित व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता दे सके|