बौद्ध धर्म/Buddhism/ For All Govt Exam [cgl, chsl, cpo, tet, police, railway.....etc]

बौद्ध धर्म

● बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे| इन्हें एशिया का ज्योति पुंज(Light of Asia) कहा जाता है|
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक
घटना                               प्रतीक              
जन्म                             कमल एवं सांड
गृह त्याग                       घोड़ा
ज्ञान                      पीपल(बोधिवृक्ष)         
निर्वाण                          पदचिन्ह
मृत्यु                             स्तूप

● गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था|
● इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे|
● इनकी माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवें दिन ही हो गई थी इनका लालन-पालन इनकी सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने किया था|
● इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था|
● गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की अवस्था में यशोधरा के साथ हुआ| इनके पुत्र का नाम राहुल था|
● सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्होंने निम्न चार दृश्यों को क्रमश: देखा-
1. बुड्ढा व्यक्ति
2. एक बीमार व्यक्ति
3. शव
4. एक सन्यासी
● संसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया, जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है|
● गृह त्याग करने के बाद सिद्धार्थ(बुद्ध) ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की| आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरु हुए|
● आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रुद्राकरामपुत्त  से शिक्षा ग्रहण की|
● उरुवेला में सिद्धार्थ को कौंडिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा एवं अस्सागी नामक पांच साधक मिले|
● बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना(फल्गु) नदी के किनारे, पीपल वृक्ष के नीचे, सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ|


● ज्ञान-प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने गए| वह स्थान बोधगया कहलाया|
● बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ(ऋषिपतनम) में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है|
● बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पालि में दिए|
● बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल, वैशाली, कौशांबी एवं अन्य राज्यों में दिए|
● बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कोशल की राजधानी श्रावस्ती में दिए|
● इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे- बिंबिसार प्रसेनजित तथा उदयिन|
● बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ईसापूर्व में कुशीनारा(देवरिया, उत्तर प्रदेश) में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गयी, जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया|
● मल्लो ने अत्यंत सम्मानपूर्वक बुद्ध का अंत्येष्टि संस्कार किया|
● एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को 8 भागों में बांट कर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया|
● बुद्ध के जन्म एवं मृत्यु की तिथि को चीनी परंपरा के कैंटोन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है|
● बौद्ध धर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान त्रिपिटक(विनयपिटक, सूत्रपिटक व अभिदम्भपिटक) से प्राप्त होता है तीनों पिटको की भाषा पालि है|
● बौद्ध धर्म मूलत: अनीश्वरवादी है| इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं है|
● बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है|
● तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को ही बुद्ध ने निर्वाण कहा है|
"विश्व दुखों से भरा है" का सिद्धांत बुद्ध ने उपनिषद से लिया|
● बुद्ध के अनुयायी दो भागों में विभाजित थे-
1. भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन्होंने सन्यास ग्रहण किया, उन्हें भिक्षुक कहा  गया|
2. उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहा गया|
● बौद्धसंघ में सम्मिलित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 15 वर्ष थी|
● बौद्ध संघ में प्रविष्टि होने को उपसंपदा कहा जाता था|
● बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं- बुद्ध, धर्म एवं संघ|
बौद्ध सभाएं
सभा                           समय                 स्थान            अध्यक्ष                शासनकाल
प्रथम बौद्ध संगीति    483 ईसा पूर्व        राजगृह          महाकश्यप               अजातशत्रु
द्वितीय बौद्ध संगीति    383 ईसापूर्व       वैशाली         सबाकामी                कालाशोक
तृतीय बौद्ध संगीति     255 ईसा पूर्व       पाटलिपुत्र      मोग्गलिपुत्त तिस्स    अशोक
चतुर्थ बौद्ध संगीति      ईस्वी की प्रथम      कुंडल वन      वसुमित्र/                 कनिष्क
                                  शताब्दी                                    अश्वघोष

● चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों हीनयान तथा महायान में विभाजित हो गया|
● धार्मिक जुलूस का प्रारंभ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारंभ किया गया| बौद्धों का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है| इसका महत्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई|
● बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यो का उपदेश दिया| ये है-
1. दु:ख 2. दु:ख समुदाय 3. दु:ख निरोध 4. दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपदा|
● इन संसारिक दु:खों से मुक्ति हेतु, बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही| ये साधन है-
1. सम्यक दृष्टि
2.सम्यक संकल्प
3.सम्यक वाणी
4.सम्यक कर्मान्त
5.सम्यक आजीव
6.सम्यक व्यायाम
7.सम्यक स्मृति
8.सम्यक समाधि
● बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरांत मनुष्य के भव तृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है|
● निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है, जिसका अर्थ है 'दीपक का बुझ जाना' अर्थात जीवन-मरण चक्र से मुक्त हो जाना| बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्न 10 शीलो पर बल दिया-
1.अहिंसा
2.सत्य
3.अस्तेय(चोरी न करना)
4.अपरिग्रह(किसी प्रकार की संपत्ति ना रखना)
5 .मद्य -सेवन न करना 
6.असमय भोजन ना करना
7.सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना
8.धन संचय ना करना
9.स्त्रियों से दूर रहना
10.नृत्य-गान आदि से दूर रहना
● बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया|
अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म में समानता है|
● जातक कथाएं प्रदर्शित करती हैं कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है तथा पशुओं के रुप में भी|
● सर्वाधिक बुद्ध मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति संभवत: मथुरा कला के अंतर्गत बनी थी|